अटलांटा में गरजा लिएंडर पेस का रैकेट, खत्म किया मेडल का 44 साल का सूखा

2024-07-20 08:17:32

Leander Paes Atlanta 1996: ‘देश के लिए खेलना मुझमें अदम्य उत्साह भर देता है.’ लिएंडर पेस के इसी जज्बे व देशभक्ति के जुनून ने भारत को कई बार संकट की घड़ियों से उबारा है. 28 साल पहले अटलांटा में हुए शताब्दी के अंतिम ओलंपिक खेलों में भी ऐसा ही कुछ रहा. ‘डेविस कप अजूबा’ कहे जाने वाले लिएंडर पेस ने 16 साल से पदक के लिए तरसते भारत को ब्रॉन्ज मेडल दिलाकर एक और करिश्मा कर डाला था 

44 साल बाद व्यक्तिगत स्पर्धा में पदक
1996 अटलांटा ओलंपिक में 44 साल बाद भारत को किसी व्यक्तिगत स्पर्धा में पदक मिला. 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में भारत के कशाबा जाधव ने फ्रीस्टाइल कुश्ती के बेंटमवेट वर्ग में ब्रॉन्ज मेडल जीता था. भारतीय हॉकी टीम ने 1980 मास्को ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता, जो देश को मिला अंतिम पदक था. लेकिन 1984 लास एंजलिस, 1988 सोल और 1992 बार्सिलोना ओलंपिक में खाली हाथों लौटने के बाद यह पहला अवसर था जब भारत का नाम पदक पाने वाले देशों की सूची में शामिल हुआ.

कई दिग्गज खिलाड़ियों को दी शिकस्त
अटलांटा ओलंपिक में लिएंडर पेस से हारने वाले रिची रेनेबर्ग, थामस एनक्विस्ट और रेंजो फर्लान इस बात से सहमत होंगे कि बहादुरी की सीमा नहीं होती. ऐसा नहीं है कि लिएंडर पेस से हारने के बाद इनके टेनिस करियर पर पूर्ण विराम लग गया हो. लेकिन अटलांटा के शताब्दी ओलंपिक का यह सबक उन्हें जरूर याद रहेगा कि  कभी-कभी अदम्य ऊर्जा व उत्साह से भरा कोई साधारण खिलाड़ी भी कोर्ट पर अपनी धाक जमा सकता है.

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Leander Paes' Olympic medal at Atlanta 1996 a triumph of mind over matter

पेस परिवार में आया दूसरा पदक
लिएंडर पेस को खेल विरासत में मिला. पेस के पिता डॉ. वेस पेस ने 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम के सदस्य के तौर पर ब्रॉन्ज मेडल जीता था, जबकि उनकी मां जेनिफर पेस राष्ट्रीय बास्केटबाल टीम की सदस्य थीं. इस तरह पेस परिवार को यह दूसरा ओलंपिक ब्रॉन्ज मेडल हासिल हुआ. पदक समारोह के बाद लिएंडर पेस ने कहा था, “अब मेरे पास अपना ब्रॉन्ज मेडल है.” लिएंडर के पिता वेस पेस को गर्व था कि बेटे ने उन्हें पीछे छोड़ दिया. उन्होंने यह कहकर खुशी जताई थी, ‘मैंने तो टीम के साथ कांस्य जीता था, वह अकेले ही जीता है.” 

धमाकेदार रही थी करियर की शुरुआत
भारत के लिए ऐतिहासिक सफलता की कहानी लिखने वाले लिएंडर पेस ने अपने टेनिस जीवन की शुरुआत भी धमाकेदार अंदाज में की थी. विंबलडन और यूएस ओपन का जूनियर खिताब जीतने वाले लिएंडर पेस ने जब 1991 में सीनियर सर्किट में पहला कदम रखा तो उसी वर्ष अमेरिका के डेविड व्हीटन और आस्ट्रेलिया के वाली मैसुर को शिकस्त दी थी. अगले साल बार्सिलोना ओलंपिक में उनकी और रमेश कृष्णन की जोड़ी डबल्स मुकाबले के क्वार्टर फाइनल में पहुंच कर पदक से बस एक कदम दूर रह गयी थी.

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Leander Paes-Rohan Bopanna to open Rio 2016 Olympics campaign against  Lukasz Kubot-Marcin Matkowski | Rio-2016-olympics News - The Indian Express

16 साल की उम्र में खेला था डेविस कप
सोलह साल की उम्र में ‘डेविस कप’ में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले इस सर्व व वॉली के जुझारू खिलाड़ी ने भारत के लिए तमाम सफलताएं अर्जित कीं और देश का मान बढ़ाया. लिएंडर पेस ने अपना पहला डेविस कप सिंगल्स मैच साल 1990 में दक्षिण कोरिया की धरती पर मेजबान टीम के खिलाफ खेला था. तब से ही वह देश के नाम पर अपनी क्षमता से कहीं अधिक उपलब्धियां हासिल करते रहे हैं, कभी-कभी तो’ उनकी जीत अचंभित करने वाली रही है.

इवानिसेविच को भी दी थी मात
टीम के लिए कुछ भी कर गुजरने वाले इस खिलाड़ी को उनके प्रतिद्वंद्वी भी डेविस कप मुकाबलों में शानदार खिलाड़ी का दर्जा देते हैं. अपने से बहुत ऊंची वरीयता वाले खिलाड़ियों को हरा कर उलटफेर करने की उनकी सूची में अटलांटा ओलंपिक से पहले ब्रिटेन के जेरमी बेट्स, स्विट्जरलैंड के जैकब लासेक, हेनरी लेकांते, फ्रांस के अर्नाड बोएश्च, दक्षिण अफ्रीका के वायने फरेरा और क्रोएशिया के गोरान इवानिसेविच जैसे दिग्गज शामिल थे. 

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डेविस कप में किया उलटफेर
लिएंडर पेस की बदौलत भारत ने डेविस कप विश्व ग्रुप प्रतियोगिता में इतिहास का सबसे बड़ा उलटफेर किया था. फ्रांस के समुद्र तटीय शहर फ्रेजस के धीमे क्ले कोर्ट पर उन्मादी दर्शकों के सामने पेस ने, जो उस समय महज 20 साल के थे, अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए हेनरी लेकांते और अर्नाड बोएश्च को मात देकर भारत को सेमीफाइनल में पहुंचाया था. 

कई रिकॉर्ड बना करियर को दिया विराम
लिएंडर पेस भारत के सफलतम टेनिस खिलाड़ी हैं. उन्होंने ग्रैंड स्लैम प्रतियोगिताओं में 18 डबल्स और मिक्सड डबल्स खिताब जीते हैं. वह डेविस कप में दुनिया के सफलतम खिलाड़ियों में से एक हैं. पेस का डेविस कप में 44 डबल्स मैच जीतने का रिकॉर्ड है. उनको देश का खेल जगत में सबसे बड़ा पुरस्कार खेल रत्न 1996-1997 में दिया गया. साथ ही 2009 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. 2014 में उन्हें पद्म भूषण दिया गया. 

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