एक गुमनाम चिट्ठी की वजह से बची वहीदा रहमान की जिंदगी, कुछ ऐसा खुला राज

2024-02-02 15:43:22

फिल्म उद्योग जिन पर गर्व करता है, उन कुछ अभिनेत्रियों में वहीदा रहमान सिरमौर हैं. भावना प्रधान गम्भीर भूमिकाओं की सिद्धहस्त वहीदा रहमान ने दर्शकों को प्रभावित किया है. वहीदा जिस सहज, स्वभाविक ढंग से भावना प्रधान रोल में अपनी सूक्ष्म संवेदनशीलता के माध्यम से प्रभाव डालती थीं, वैसा हिंदी फिल्म की कोई अभिनेत्री नहीं कर सकी. ट्रेंजडी क्वीन मीना कुमारी ने भाव विभोर करने के लिए अपनी कंपकंपी आवाज और फूट-फूट कर रोने के अंदाज को सहारा बनाया था. लेकिन वहीदा रहमान अपने सहज, स्वाभाविक अभिनय से बेमिसाल अभिनेत्री साबित हुई.

आन्ध्र प्रदेश में 3 फरवरी, 1938 में जन्मी, मद्रास में पली वहीदा रहमान को फिल्म उद्योग में लाने का श्रेय कुशल निर्माता-निर्देशक एवं अभिनेता गुरुदत्त को जाता है. गुरुदत्त की फिल्म सी.आई.डी. से ही वहीदा रहमान ने अपना फिल्मी कैरियर शुरू किया था. इस फिल्म में गुरुदत्त हीरो नहीं थे, बल्कि हीरो के रूप में देवानन्द को लिया था.

वहीदा रहमान की पहली फिल्म सीआईडी में एक दृश्य था- जिस में उन्हें अपने सीने से हवा में दुपट्टा उड़ाना था. सिर्फ इतना ही नहीं, उस दुपट्टे के नीचे गले तक कटा हुआ ब्लाउज पहनना था. वहीदा रहमान ने कहा- ‘ऐसा ब्लाउज तो मैं पहनूंगी ही नहीं और दुपट्टे को अच्छी तरह से पकडूंगी-उड़ेगा कैसे?’ आखिर, वहीदा की ही बात रखी गई. अपनी पहली फिल्म में नग्नता का विरोध करने वाली वहीदा ने सिर्फ नग्नता की वजह से कोनार्ड रक्स की फिल्म ‘सिदार्थ’ का रोल अस्वीकार किया था.

गुरुदत्त और वहीदा की प्रेम कहानी
गुरुदत्त और वहीदा रहमान की हिट जोड़ी से एक ऐसा संवेदनशील गीत बना जो गुनगुनाया नहीं जा सकता है सिर्फ एहसास किया जा सकता है. ‘प्यासा’ फिल्म तक गुरुदत्त खुद निर्देशन करने लगे थे. ‘प्यासा’ फिल्म के लिए वहीदा रहमान की तलाश थी. ‘प्यासा’ फिल्म के साथ ही गुरुदत्त ने अनुबंध कर लिया था कि वह सिर्फ उनकी ही फिल्मों में काम करेंगी. वहीदा की कला को गुरुदत्त ने परिष्कृत किया, एक शिल्पी की तरह. गुरुदत्त और वहीदा ने एक साथ ‘प्यासा’, ‘कागज के फूल’, ‘साहब बीवी और गुलाम’ और ‘चैदहवीं का चांद’ जैसी बेमिशाल फिल्में दीं. हिंदी रजत पट की इन अविस्मरणीय फिल्मों के साथ ही गुरुदत्त और वहीदा रहमान ने चाहतों की मजबूरी का प्रेम गीत भी दिया.’कागज के फूल’ से लेकर ‘साहब बीवी गुलाम’ के लम्बे सफर में गुरुदत्त के साथ वहीदा का होना फिल्म उद्योग में चर्चा का विषय बना. दोनों के प्यार और रोमांस की खबरें छपीं. अभिनय की जिन्दगी में प्यार और रोमांस जब बहुत अधिक घुल-मिल जाता है तो वह वास्तविकता अख्तियार करने लगता है. यह एक स्वाभाविक सच है. गुरुदत्त और वहीदा का आकर्षण स्वाभाविक था. गुरुदत्त विवाहित थे. गुरुदत्त और वहीदा के प्रेम की खबर उनकी पत्नी गायिका गीता दत्त को लगी तो दोनों के बीच तनाव बढ़े.

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गीता दत्त भी अपने जमाने की प्रसिद्ध गायिका थीं. उनकी खनकती आवाज की नकल करने वाली दूसरी गायिका पैदा ही नहीं हो सकी. इस स्वाभिमानी गायिका ने शराब का सहारा लिया.’कागज के फूल’ में उनका गाया गीत ‘वक्त ने किया क्या हंसी सितम’ उन पर चरितार्थ हो गया. दूसरी ओर गुरुदत्त का ‘चैदहवी का चाँद’ वहीदा में निखार बढ़ने लगा. वहीदा रहमान के परिवार वालों को भी एक विवाहित पुरुष से संबंध रखने पर एतराज था. अनुबंध का समय खत्म होते ही वहीदा ने सुनील दत्त की अजंता आर्ट्स के बैनर तले ‘मुझे जीने दो’ स्वीकार कर ली. गुरुदत्त को ऐसी उम्मीद नहीं थी. गुरुदत्त ने नींद की गोलियां खाकर आत्महत्या कर ली. गुरुदत्त और वहीदा रहमान के प्रेम का संगीत किसी अधूरी धुन पर समाप्त हो गया. गुरुदत्त को वहीदा रहमान आज भी अपने अभिनय गुरु मानती हैं. गुरुदत्त ने जिस तरह से रोमेन्टिज्म को सेलूलाइड पर जिंदा किया था वैसा कोई निर्देशक दोबारा न कर सका. ‘प्यासा’ फिल्म देखकर ही भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने वैश्यावृति के खिलाफ एक्ट बनाया था.

गुरुदत्त प्रोडक्शन की ‘सीआईडी’ की बेबस जासूस, ‘कागज के फूल’ की अध्यापिका, ‘चैदहवीं का चांद’ की खूबसूरत चांद, ‘प्यासा’ की भावुक तवायफ और ‘साहब बीवी गुलाम’ की हँसमुख चंचल लड़की ने दर्शकों की भपूर सराहना पाई.

देवानन्द के साथ वहीदा ने ‘बात एक रात की’, ‘काला बाजार’, ‘गाइड’, ‘प्रेमपुजारी’ सहित फिल्मों में काम किया. ‘प्रेम पुजारी’ को लेकर वहीदा और देवानन्द में मनमुटाव हो गया था. इस फिल्म में आई नई अभिनेत्री जाहिदा को अधिक प्रभाव में लाने के लिए वहीदा की रीलों में कांट-छांट कराई गई थी.

‘गाइड’ में वहीदा रहमान ने रोमांचित अभिनेत्री और कुशल नृत्यकारा होने का परिचय दिया. इस फिल्म ने उनकी ख्याति में चार चांद लगाए. ‘गाइड’ के अभिनय में वहीदा को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्म फेयर अवार्ड मिला था.

दिलीप कुमार के साथ वहीदा रहमान ने ‘दिल दिया दर्द लिया’, ‘राम और श्याम’ तथा ‘आदमी’ में काम किया. ‘राम और श्याम’ का रोल वहीदा को दिलीप और वैजयन्ती माला के आपसी मनमुटाव हो जाने की वजह से मिला था. वहीदा ने इस फिल्म में अभी अपने अभिनय से प्रभावित किया था.

सुनील दत्त के साथ वहीदा ने ‘दर्पण’, ‘मुझे जीने दो’ और ‘रेशमा और शेरा’ में काम किया. अजन्ता आर्ट्स की ‘मुझे जीने दो’ सफल और ‘रेशमा और शेरा’ असफल फिल्म साबित हुई. लेकिन वहीदा का रोल दोनों फिल्मों में अविस्मरणीय रहा.

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हेमन्त दा की तीन फिल्मों में वहीदा ने काम किया. ससपेन्स फिल्म ‘बीस साल बाद’, ‘कोहरा’ तथा आशुतोष मुखर्जी के उपन्यास ‘दीप जेले जाई’ पर आधारित फिल्म ‘खामोशी’. ‘खामोशी’ फिल्म का रोल वहीदा रहमान के लिए चुनौती था, क्योंकि बंगला फिल्म ‘दिप जेले जाई’ की भूमिका सुचित्रा सेन ने निभाई थी. फिल्म अभिनेत्री नरगिस का कहना था कि हिंदी में अभिनय के साथ न्याय न हो सकेगा. लेकिन ‘खामोशी’ फिल्म की त्यागमीय नर्स के रूप में वहीदा रहमान ने समीक्षकों और दर्शकों की भरपूर सराहना पाई. ‘खामोशी’ की सजल और भावपूर्ण भूमिका के लिए वहीदा को सन 1972 का उर्वशी पुरस्कार भारत सरकार द्वारा प्रदान किया गया. वहीदा रहमान ने महान फिल्मकार सत्यजित राय की फिल्म ‘अभिजान’ में प्रतिभा का परिचय दिया.

वहीदा रहमान ने फिल्म ‘पत्थर के सनम’ में खुद पर फिल्माए नृत्यों का खुद ही निर्देशन किया था. हां, अगर वहीदा इस ओर ध्यान देती तो एक कुशल नृत्य निर्देशिका बन कर उभर सकती थीं.

तीसरी कसम में बिना पैसे के काम किया
हिंदी के प्रसिद्ध लेखक फणीश्वर नाथ रेणु की लम्बी कहानी ‘तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम’ पर आधारित फिल्म ‘तीसरी कसम’ में वहीदा रहमान ने बिना किसी पारिश्रमिक के काम किया था. इस राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त फिल्म के मार्मिक रोल पर वहीदा को बंगाल जर्नलिस्ट एसोसिएशन ने सम्मानित किया. वहीदा को सन 1968 में फिल्म ‘नीलकमल’ में फिल्म फेयर अवार्ड मिला.

वहीदा रहमान ने अपनी फिल्मी जिन्दगी में फेल, हिट, जुबली सभी तरह की फिल्मों में काम किया. फिल्म कैसी भी हो पर वहीदा रहमान का अभिनय सशक्त और प्रभावपूर्ण रहा.

जिन दिनों वहीदा रहमान सफलता की बुलन्दियां चूम रही थीं, उसकी एक फिल्म आई थी ‘शगुन’. ‘पर्वतों के पेड़ों की सांझ का बसेरा है’, ‘सुरमई उजाला है चम्पई अंधेरा है’ जैसे लोकप्रिय गीत की इस फिल्म में वहीदा के साथ हीरो के रूप में शशि रेखी (कंवलजीत के नाम से) ने काम किया था. शशि रेखी वहीदा को अपना दिल दे बैठा, लेकिन वहीदा ने उसके प्यार को स्वीकार नहीं किया. यह पंजाबी नौजवान अपना टूटा हुआ दिल ले कर स्विट्जरलैंड चला गया.

उम्र से तो कोई नहीं भाग सकता. 17 साल की फिल्मी जिन्दगी पूरी करने के साथ साथ वहीदा रहमान ने अपनी उम्र के 86 वर्ष पार कर लिए हैं.

एक गुमनाम चिट्ठी ने खोला राज
वहीदा रहमान के पास जब फिल्मों की भीड़ नहीं रही, उन्हें एक जीवन साथी की जरूरत महसूस हुई. तब उन्होंने हैदराबाद के नवाब फरीदा अहमद सिद्दिकी से सगाई कर ली. सगाई के तुरन्त बाद ही किसी और ने उन्हें खत लिखा, जिसमें सिद्दिकी के चरित्रहीन होने की कुछ सच्चाई पेश की गई थी. वहीदा ने इन सच्चाई का पता लगा कर और सबूत मिल जाने पर सगाई तोड़ दी. वहीदा जब इस दुःस्वप्न से जूझ रही थीं, उस समय शशि रेखी अपनी प्यार की झोली लिए वहीदा के पास पुनः हाजिर हुआ. अब की बार वहादा ने अपने प्यार के भिखारी को दुत्कारा नहीं, बल्कि उसकी झोली में अपना दिल डाल दिया. वहीदा ने बिना किसी शोर-शराबे के शशि रेखी से विवाह कर लिया. शादी में वहीदा की बहन सईदा ने उलझनें पैदा कर दीं. सईदा का कहना था कि शादी इस्लामी रीति रिवाज से होगी. बारह वर्ष की कठिन तपस्या के बाद शशि रेखी को उसका चैदहवीं का चांद मिला. धर्म की दीवारों को तोड़ कर वहीदा से उसने इस्लामी रीति रिवाज से ही शादी की.

‘आज की धारा’ में वह पुनः दर्शकों के सामने पुरअसर अन्दाज के साथ आईं. ‘कभी-कभी’, ‘त्रिशूल’, ‘दुनियादारी’, ‘अदालत’ और ‘लम्हे’ में वहीदा ने अपनी उम्र के साथ न्याय करके खूबसूरत अभिनय किया. वहीदा रहमान ने एक साक्षात्कार में कहा था कि कलाकार कभी भी सन्तुष्ट नहीं होता है, पर उसे वक्त के साथ ग्रेसफुली रिटायर हो जाना चाहिए. वहीदा ने ऐसा ही किया. उन्होंने अपनी प्राथमिकताएं बदलकर पारिवारिक दायित्वों में अपने को लगा लिया.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)

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